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दिन दिवंगत हुए / कुँअर बेचैन

2,263 bytes added, 07:41, 29 दिसम्बर 2006
लेखक: [[कुँअर बेचैन]]
[[Category:कविताएँ]]
[[Category:कुँअर बेचैन]]

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रोज़ आँसू बहे रोज़ आहत हुए<br>
रात घायल हुई, दिन दिवंगत हुए<br>
हम जिन्हें हर घड़ी याद करते रहे<br>
रिक्त मन में नई प्यास भरते रहे<br>
रोज़ जिनके हृदय में उतरते रहे<br>
वे सभी दिन चिता की लपट पर रखे<br>
रोज़ जलते हुए आख़िरी ख़त हुए<br>
दिन दिवंगत हुए !<br><br>

शीश पर सूर्य को जो सँभाले रहे<br>
नैन में ज्योति का दीप बाले रहे<br>
और जिनके दिलों में उजाले रहे<br>
अब वही दिन किसी रात की भूमि पर<br>
एक गिरती हुई शाम की छत हुए !<br>
दिन दिवंगत हुए !<br><br>

जो अभी साथ थे, हाँ अभी, हाँ अभी<br>
वे गए तो गए, फिर न लौटे कभी<br>
है प्रतीक्षा उन्हीं की हमें आज भी<br>
दिन कि जो प्राण के मोह में बंद थे<br>
आज चोरी गई वो ही दौलत हुए ।<br>
दिन दिवंगत हुए !<br><br>

चाँदनी भी हमें धूप बनकर मिली<br>
रह गई जिंन्दगी की कली अधखिली<br>
हम जहाँ हैं वहाँ रोज़ धरती हिली<br>
हर तरफ़ शोर था और इस शोर में<br>
ये सदा के लिए मौन का व्रत हुए।<br>
दिन दिवंगत हुए!<br><br>

-- यह कविता [[deepak]] द्वारा कविता कोश में डाली गयी है।<br><br>
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