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नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना जायसवाल |संग्रह=मछलियाँ देखती हैं सपने / …
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|रचनाकार=रंजना जायसवाल
|संग्रह=मछलियाँ देखती हैं सपने / रंजना जायसवाल
}}
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<poem>
तुम्हारा आँचल
कितना बडा़ था माँ
समा जाते थे जिसमें
मेरे सारे खेल
सारे सपने
सारी गुस्ताखियाँ...
मेरा दामन
कितना छोटा है माँ
नहीं समा पाता जिसमें
तुम्हार बुढा़पा...।
</poem>
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|संग्रह=मछलियाँ देखती हैं सपने / रंजना जायसवाल
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तुम्हारा आँचल
कितना बडा़ था माँ
समा जाते थे जिसमें
मेरे सारे खेल
सारे सपने
सारी गुस्ताखियाँ...
मेरा दामन
कितना छोटा है माँ
नहीं समा पाता जिसमें
तुम्हार बुढा़पा...।
</poem>