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माँ-2 / रंजना जायसवाल

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<poem>
तुम्हारा आँचल
कितना बडा़ था माँ
समा जाते थे जिसमें
मेरे सारे खेल
सारे सपने
सारी गुस्ताखियाँ...

मेरा दामन
कितना छोटा है माँ
नहीं समा पाता जिसमें
तुम्हार बुढा़पा...।
</poem>