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16:46, 1 फ़रवरी 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रंजना जायसवाल
|संग्रह=मछलियाँ देखती हैं सपने / रंजना जायसवाल
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
माँ
बेचैन रहती थी
हर पल
घर-गृहस्थी
पति-बच्चों के लिए
चुप पडी़ है आज
उसे फ़िक्र ही नहीं जैसे
बिल्ली से दूध बचाने की
नाश्ता-खाना बनाने की
बच्चों के झगडे़ सुलझान्र की
जब तक वह थी
नहीं पा सकी सुकून
क्या सभी माएँ ऐसी ही होती हैं
मरकर ही चैन से सोती हैं...।
</poem>