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|संग्रह=खोया हुआ सा कुछ / निदा फ़ाज़ली
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<poem>
कहीं-कहीं से हर चेहरा
तुम जैसा लगता है
तुमको भूल न पायेंगे हम
ऐसा लगता है
कहीं-कहीं से हर चेहरा<br>ऐसा भी इक रंग है जोतुम जैसा लगता करता है<br>बातें भीतुमको भूल न पायेंगे हम<br>जो भी इसको पहन ले वोऐसा अपना-सा लगता है<br><br>
ऐसा भी इक रंग है जो<br>तुम क्या बिछड़े भूल गयेकरता है बातें भी<br>रिश्तों की शराफ़त हमजो भी इसको पहन ले वो<br>मिलता है कुछ दिन हीअपना-सा अच्छा लगता है<br><br>
तुम क्या बिछड़े भूल गये<br>अब भी यूँ मिलते हैं हमसे रिश्तों की शराफ़त हम<br>फूल चमेली के जो भी मिलता है कुछ दिन ही<br>जैसे इनसे अपना कोईअच्छा रिश्ता लगता है<br><br>
अब भी यूँ मिलते हैं हमसे <br>फूल चमेली के <br>जैसे इनसे अपना कोई<br> रिश्ता लगता है<br><br> और तो सब कुछ ठीक है लेकिन<br>कभी-कभी यूँ ही<br>चलता-फिरता शहर अचानक <br>
तन्हा लगता है
</poem>
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