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{{KKRachna
|रचनाकार=निदा फ़ाज़ली
|संग्रह=आँखों भर आकाश / निदा फ़ाज़ली;खोया हुआ सा कुछ / निदा फ़ाज़ली
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<poem>
बजी घंटियाँ
ऊँचे मीनार गूँजे
सुनहरी सदाओं ने
उजली हवाओं की पेशानियों की
बजी घंटियाँ <br>रहमत केऊँचे मीनार गूँजे<br>बरकत केसुन्हेरी सदाओं पैग़ाम लिक्खे—वुजू करती तुम्हेंखुली कोहनियों तकमुनव्वर हुईं—झिलमिलाए अँधेरे--भजन गाते आँचल ने<br>उजली हवाओं पूजा की पेशानियों थाली सेबाँटे सवेरेखुले द्वार !बच्चों ने बस्ता उठायाबुजुर्गों ने—पेड़ों को पानी पिलाया--नये हादिसों की<br><br>खबर ले केबस्ती की गलियों मेंअख़बार आयाखुदा की हिफाज़त की ख़ातिरपुलिस नेपुजारी के मन्दिर मेंमुल्ला की मस्जिद मेंपहरा लगाया।
रहमत के<br>बरकत के<br>पैग़ाम लिक्खे—<br>वुजू करती तुम्हें<br>खुली कोहनियों तक<br>मुनव्वर हुईं—<br>झिलमिलाए अँधेरे<br>--भजन गाते आँचल ने<br>पूजा की थाली से<br>बाँटे सवेरे<br>खुले द्वार !<br>बच्चों ने बस्ता उठाया<br>बुजुर्गों ने—<br>पेड़ों को पानी पिलाया<br>--नये हादिसों की खबर ले के<br>बस्ती की गलियों में<br>अख़बार आया<br>खुदा की हिफाज़त की ख़ातिर<br>पुलिस ने<br>पुजारी के मन्दिर में<br>मुल्ला की मस्जिद में<br>पहरा लगाया।<br><br> खुद इन मकानों में लेकिन कहाँ था<br>सुलगते मुहल्लों के दीवारों दर में<br>
वही जल रहा था जहाँ तक धुवाँ था
</poem>
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