भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
}}
[[Category:लम्बी कविता]]
 
[[बादल राग / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला" / भाग १|<< पिछला भाग]]
<poem>
सिन्धु के अश्रु!
धारा के खिन्न दिवस के दाह!
विदाई के अनिमेष नयन!
मौन उर में चिह्नित कर चाह
छोड़ अपना परिचित संसार-
सुरभि का कारागार,
चले जाते हो सेवा-पथ पर,
तरु के सुमन!
सफल करके
मरीचिमाली का चारु चयन!
स्वर्ग के अभिलाषी हे वीर,
सव्यसाची-से तुम अध्ययन-अधीर
अपना मुक्त विहार,
सिन्धु के अश्रु!<br>धारा के खिन्न दिवस के दाह!<br>विदाई के अनिमेष नयन!<br>मौन उर में चिह्नित कर चाह<br>छोड़ अपना परिचित संसार-<br><br> सुरभि का कारागार,<br>चले जाते हो सेवा-पथ पर,<br>तरु के सुमन!<br>सफल करके<br>मरीचिमाली का चारु चयन!<br>स्वर्ग के अभिलाषी हे वीर,<br>सव्यसाची-से तुम अध्ययन-अधीर<br>अपना मुक्त विहार,<br><br> छाया में दुःख के अन्तःपुर का उद्घाचित द्वार<br>छोड़ बन्धुओ के उत्सुक नयनों का सच्चा प्यार,<br>जाते हो तुम अपने पथ पर,<br>स्मृति के गृह में रखकर<br>अपनी सुधि के सज्जित तार।<br><br> पूर्ण-मनोरथ! आए-<br>तुम आए;<br>रथ का घर्घर नाद<br>तुम्हारे आने का संवाद!<br>ऐ त्रिलोक जित्! इन्द्र धनुर्धर!<br>सुरबालाओं के सुख स्वागत।<br>विजय! विश्व में नवजीवन भर,<br>उतरो अपने रथ से भारत!<br>उस अरण्य में बैठी प्रिया अधीर,<br>कितने पूजित दिन अब तक हैं व्यर्थ,<br>मौन कुटीर।<br><br>
आज भेंट होगीपूर्ण-मनोरथ! आए-<br>हाँ, होगी निस्संदेह<br>तुम आए; आज सदा-रथ का घर्घर नाद तुम्हारे आने का संवाद! ऐ त्रिलोक जित्! इन्द्र धनुर्धर! सुरबालाओं के सुख-छाया होगा कानन-गेह<br>स्वागत। आज अनिश्चित पूरा होगा श्रमिक प्रवासविजय! विश्व में नवजीवन भर,<br>आज मिटेगी व्याकुल श्यामा के अधरों की प्यास।<br><br>उतरो अपने रथ से भारत! उस अरण्य में बैठी प्रिया अधीर, कितने पूजित दिन अब तक हैं व्यर्थ, मौन कुटीर।
आज भेंट होगी-
हाँ, होगी निस्संदेह
आज सदा-सुख-छाया होगा कानन-गेह
आज अनिश्चित पूरा होगा श्रमिक प्रवास,
आज मिटेगी व्याकुल श्यामा के अधरों की प्यास।
</poem>
[[बादल राग / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला" / भाग ३|अगला भाग >>]]
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,333
edits