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[[Category:लम्बी कविता]]
 
[[बादल राग / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला" / भाग ४|<< पिछला भाग]]
 <poem>निरंजन बने नयन अंजन !<br>कभी चपल गति, अस्थिर मति,<br>जल-कलकल तरल प्रवाह,<br>वह उत्थान-पतन-हत अविरत<br>संसृति-गत उत्साह,<br>कभी दुख -दाह<br>कभी जलनिधि-जल विपुल अथाह--<br>कभी क्रीड़ारत सात प्रभंजन--<br>बने नयन-अंजन !<br>कभी किरण-कर पकड़-पकड़कर<br>चढ़ते हो तुम मुक्त गगन पर,<br>झलमल ज्योति अयुत-कर-किंकर, <br> सीस झुकाते तुम्हे तिमिरहर--<br>अहे कार्य से गत कारण पर !<br>निराकार, हैं तीनों मिले भुवन--<br>बने नयन-अंजन !<br>आज श्याम-घन श्याम छवि<br>मुक्त-कण्ठ है तुम्हे देख कवि,<br>अहो कुसुम-कोमल कठोर-पवि !<br>शत-सहस्र-नक्षत्र-चन्द्र रवि संस्तुत<br>नयन मनोरंजन !<br>बने नयन अंजन ! <br/poem><br> (कविता संग्रह, "परिमल" से) 
[[बादल राग / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला" / भाग ६|अगला भाग >>]]
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