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{{KKRachna
|रचनाकार=महादेवी वर्मा
|संग्रह=नीरजा / महादेवी वर्मा
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बताता जा रे अभिमानी!
 
कण-कण उर्वर करते लोचन
 
स्पन्दन भर देता सूनापन
 
जग का धन मेरा दुख निर्धन
 
तेरे वैभव की भिक्षुक या
 
कहलाऊँ रानी!
 
बताता जा रे अभिमानी!
 
दीपक-सा जलता अन्तस्तल
 
संचित कर आँसू के बादल
 
लिपटी है इससे प्रलयानिल,
 
क्या यह दीप जलेगा तुझसे
 
 
भर हिम का पानी?
 
बताता जा रे अभिमानी!
 
चाहा था तुझमें मिटना भर
 
दे डाला बनना मिट-मिटकर
 
यह अभिशाप दिया है या वर;
 
पहली मिलन कथा हूँ या मैं
 
चिर-विरह कहानी!
 
बताता जा रे अभिमानी!
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