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|रचनाकार= महादेवी वर्मा|संग्रह=नीरजा / महादेवी वर्मा}}{{KKCatKavita}}{{KKCatGeet}}<poem>
पथ देख बिता दी रैन
 मैं प्रिय पहचानी नहीं ! 
तम ने धोया नभ-पंथ
 
सुवासित हिमजल से;
 
सूने आँगन में दीप
 
जला दिये झिल-मिल से;
 
आ प्रात बुझा गया कौन
 अपरिचित, जानी नहीं ! मैं प्रिय पहचानी नहीं ! 
धर कनक-थाल में मेघ
 
सुनहला पाटल सा,
 
कर बालारूण का कलश
 
विहग-रव मंगल सा,
 
आया प्रिय-पथ से प्रात-
 सुनायी कहानी नहीं ! 
मैं प्रिय पहचानी नहीं !
 
नव इन्द्रधनुष सा चीर
 
महावर अंजन ले,
 
अलि-गुंजित मीलित पंकज-
 
-नूपुर रूनझुन ले,
 
फिर आयी मनाने साँझ
 मैं बेसुध मानी नहीं ! मैं प्रिय पहचानी नहीं ! 
इन श्वासों का इतिहास
 
आँकते युग बीते;
 
रोमों में भर भर पुलक
 
लौटते पल रीते;
 
यह ढुलक रही है याद
 नयन से पानी नहीं ! मैं प्रिय पहचानी नहीं ! 
अलि कुहरा सा नभ विश्व
 मिटे बुद्‌बुद्‌‌‍बुद्‌बुद्‌‌-जल सा; 
यह दुख का राज्य अनन्त
 
रहेगा निश्चल सा;
 
हूँ प्रिय की अमर सुहागिनि
 पथ की निशानी नहीं ! मैं प्रिय पहचानी नहीं !</poem>
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