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{{KKRachna
|रचनाकार=रवीन्द्र प्रभात
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
हमें-
स्वच्छ , प्रदूषण रहित
शहर-कस्वा-गाँव चाहिए ।
जहाँ शेर-बकरी साथ बैठे
वह पड़ाव चाहिए ।।
हमें नहीं चाहिए
कोई भी सेतु
इस उफनती सी नदी को
पार करने हेतु
हाकिम और ठेकेदार
पैसे हज़म कर जाएँ
और उद्घाटन के पहले
टूटकर बिखर जाएँ
हमें पार करने के लिए
बस एक नाव चाहिए ।
जहाँ शेर-बकरी साथ वैठे
वह पड़ाव चाहिए ।।
हमें नही चाहिए
कारखानों का धुँआ
जल- जमाव
सुलगता तेल का कुँआ
चारो तरफ
लौदस्पिकर की आवाज़
प्रदूषित पानी
और मंहगे अनाज
सुबह की धूप, हरे- भरे
पेड़ों की छाँव चाहिए ।
जहाँ शेर-बकरी साथ बैठे
वह पड़ाव चाहिए ।।
हमें नहीं चाहिए
रिश्वत के घरौंदे
जिसमें रहते हों
वहशी / दरिन्दे
मंडी में -
औरत की आबरू बिके
असहायों की आंखों से
रक्त टपके
जहाँ पूज्य हो औरत
हमें वह ठांव चाहिए ।
जहाँ शेर- बकरी साथ बैठे
वह पड़ाव चाहिए ।।
<poem>
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|रचनाकार=रवीन्द्र प्रभात
}}
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<poem>
हमें-
स्वच्छ , प्रदूषण रहित
शहर-कस्वा-गाँव चाहिए ।
जहाँ शेर-बकरी साथ बैठे
वह पड़ाव चाहिए ।।
हमें नहीं चाहिए
कोई भी सेतु
इस उफनती सी नदी को
पार करने हेतु
हाकिम और ठेकेदार
पैसे हज़म कर जाएँ
और उद्घाटन के पहले
टूटकर बिखर जाएँ
हमें पार करने के लिए
बस एक नाव चाहिए ।
जहाँ शेर-बकरी साथ वैठे
वह पड़ाव चाहिए ।।
हमें नही चाहिए
कारखानों का धुँआ
जल- जमाव
सुलगता तेल का कुँआ
चारो तरफ
लौदस्पिकर की आवाज़
प्रदूषित पानी
और मंहगे अनाज
सुबह की धूप, हरे- भरे
पेड़ों की छाँव चाहिए ।
जहाँ शेर-बकरी साथ बैठे
वह पड़ाव चाहिए ।।
हमें नहीं चाहिए
रिश्वत के घरौंदे
जिसमें रहते हों
वहशी / दरिन्दे
मंडी में -
औरत की आबरू बिके
असहायों की आंखों से
रक्त टपके
जहाँ पूज्य हो औरत
हमें वह ठांव चाहिए ।
जहाँ शेर- बकरी साथ बैठे
वह पड़ाव चाहिए ।।
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