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उसके अपने कभी अपने नही हुए
 
अधूरे सपनों को गले लगाकर
 
बैठा यह मोहन ठकुरी
 
गमले के कैकटस जैसा
 
न फूल सकता है, न फैल सकता है!
 
उसकी हँसी कृत्रिम है
अव्यक्त व्यथा-वेदनाओं में लिपटकर
 
बैठा यह मोहन ठकुरी
 
किसी के मन में माया बनकर रह नही सकता
 
किसी की आँखों में आँसू बनकर छलक नही सकता !
('''मूल नेपाली भाषा से अनुवाद : स्वयं ) विर्ख खड़का डुवर्सेली </poem>
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