{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=मोहन ठकुरी|संग्रह=}}{{KKCatKavita}}{{KKCatNepaliRachna}}<poem>
उसके अपने कभी अपने नही हुए
अधूरे सपनों को गले लगाकर
बैठा यह मोहन ठकुरी
गमले के कैकटस जैसा
न फूल सकता है, न फैल सकता है!
उसकी हँसी कृत्रिम है
अव्यक्त व्यथा-वेदनाओं में लिपटकर
बैठा यह मोहन ठकुरी
किसी के मन में माया बनकर रह नही सकता
किसी की आँखों में आँसू बनकर छलक नही सकता !
('''मूल नेपाली भाषा से अनुवाद : स्वयं ) विर्ख खड़का डुवर्सेली </poem>