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12:22, 9 फ़रवरी 2010 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=घनानंद
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<poem>
सावन आवन हेरि सखी,
::मनभावन आवन चोप विसेखी ।
छाए कहूँ घनआनँद जान,
::सम्हारि की ठौर लै भूल न लेखी ॥
बूंदैं लगै, सब अंग दगै,
::उलटी गति आपने पापन पेखी ।
पौन सों जागत आगि सुनी ही.
::पै पानी सों लागत आँखिन देखी ॥
</poem>