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एक दिन / आलोक श्रीवास्तव-२

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|रचनाकार=आलोक श्रीवास्तव-२
|संग्रह=जब भी वसन्त के फूल खिलेंगे / आलोक श्रीवास्तव-२
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<Poem>
प्यार
पीड़ा ही छोड़ जाता है एक दिन
इस पीड़ा को अर्थ देने में
फिर बीतती है जिन्दगी
धूप की फूल की
हल्की उड़ती हवा की
भाषा समझ में आने लगती है
प्यार तरह-तरह से
उद्भाषित होता है
डूब जाता है शब्द
अर्थ में !
</poem>
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