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प्यार / आलोक श्रीवास्तव-२

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|रचनाकार=आलोक श्रीवास्तव-२
|संग्रह=जब भी वसन्त के फूल खिलेंगे / आलोक श्रीवास्तव-२
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<Poem>
शरीर से मन तक फैलती
यह चाह कैसी है?
सू होती
चेतना से शरीर तक
व्याप्त होती...

...........

एक रिश्ता
मस्तिष्क तक पहुंचने की कोशिश करता
लहूलुहान हो जाता है
शरीर पर टिकी
सभ्यता में.
</poem>
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