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{{KKRachna
|रचनाकार=श्रीकांत वर्मा|संग्रह=भटका मेघ / श्रीकांत वर्मा }}{{KKCatKavita}}<poem>भटक गया हूँ---मैं असाढ़ का पहला बादलश्वेत फूल-सी अलका कीमैं पंखुरियों तक छू न सका हूँकिसी शाप से शप्त हुआदिग्भ्रमित हुआ हूँ।शताब्दियों के अंतराल में घुमड़ रहा हूँ, घूम रहा हूँ।कालिदास मैं भटक गया हूँ,मोती के कमलों पर बैठीअलका का पथ भूल गया हूँ।
बार-बार सूखी धरती का रूखा मस्तक चूम रहा हूँ।
</poem>