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देखते जाओ मगर कुछ भी / क़तील

No change in size, 23:33, 15 फ़रवरी 2010
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देखते जाओ मगर कुछ भी जुबां से न कहो<br />| मसलिहत का ये तकाज़ा है की खामोश रहो||
लोग देखंगे तो अफसाना बना डालेंगे<br />
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