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Kavita Kosh से
जग्गा जमया ते मिलन वधाईयां,
के सारे पिंड गुड वण्डदी, जगया
जे मैं जाणदी जग्गे मर जाणा,
मैं इक थीं दो जणदी, जगया!
-जग्गे जिन्दे नू सूली उत्ते टंगया,
जग्गा मारया बोड दी छां ते,
के नौ मण रेत भिज गयी, सुरना !
-चली दुक्खां दी अन्हेरी ऐसी,
- वे तू दुक्ख पुत्तरां दा वेखें,
वे टूटे तेरा मान हाकमा,ढोल वे!
-सानू शगणा दा कर दे लीरा,
के छड़ेयां दा पुन्न टोड दे, हाल नी! ,
-बारी खोल के यारी दी लाज रख लै,