भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
मिला दिल , मिल के टूटा जा रहा है <br />
नसीबा बन के फूटा जा रहा है..
वही अब हम से रूठा जा रहा है
अंधेरा हर तरफ़, तूफ़ान भारी <br />
और उनका हाथ छूटा जा रहा है
दुहाई अहल-ए-मंज़िल की, दुहाई <br />
मुसाफ़िर कोई लुटा जा रहा है