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Kavita Kosh से
जग्गा जमया ते मिलन वधाईयां,
के सारे पिंड गुड वण्डदी, वडे हो काका डालदा जगया !
जे मैं जाणदी जग्गे मर जाणा,
मैं इक थीं थान्यीं दो जणदी, जगया!
टुट्टी होई माँ दे कलेजे छुरा वजया
जग्गे मारया लैयल पुर डाका
तारां खड़क गयीं आपे
तारीखान पुगातन गे तेरे मापे
कच्चे पुल्ले ते लड़ाइयाँ होइयां
छाबियाँ दे घुण्ड मुड गये जगया
तुर परदेस गयों वे बुआ वजया
-जग्गे जिन्दे नू सूली उत्ते टंगया,
जग्गा मारया बोड दी छां ते,
के नौ मण रेत भिज गयी, सुरना !सूरना,
नईयां ने वड छड्या जग्गा सूरमा
हाय माँ दा मार दित्तइ पुत्त सूरमा,
-चली दुक्खां दी अन्हेरी ऐसी,