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छोड आए हम वो गलियाँ / माचिस

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छोड़ आए हम, वो गलियाँ - ४<br />

जहाँ तेरे पैरों के, कँवल गिरा करते थे<br />
हँसे तो दो गालों में, भँवर पड़ा करते थे<br />
तेरी कमर के बल पे, नदी मुड़ा करती थी<br />
हँसी तेरी सुन सुन के, फ़सल पका करती थी<br />
छोड़ आए हम ...<br />

जहाँ तेरी एड़ी से, धूप उड़ा करती थी<br />
सुना है उस चौखट पे, अब शाम रहा करती है<br />
लटों से उलझी-लिपटी, इक रात हुआ करती थी<br />
कभी कभी तकिये पे, वो भी मिला करती है<br />
छोड़ आए हम ...<br />

दिल दर्द का टुकड़ा है, पत्थर की डली सी है<br />
इक अंधा कुआँ है या, इक बंद गली सी है<br />
इक छोटा सा लम्हा है, जो ख़त्म नहीं होता<br />
मैं लाख जलाता हूँ, यह भस्म नहीं होता<br />
यह भस्म नहीं होता ...<br />
छोड़ आए हम ...<br />
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