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Kavita Kosh से
अभी समय है सुधार कर लो ये आनाकानी नहीं चलेगी
सही की नक़ली मुहल मुहर लगाकर ग़लत कहानी नहीं चलेगी
घमण्डी वक़्तों के बादशाहों बदलते मौसम की नब्ज़ देखो