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अकेला चल, अकेला चल / गुलाब खंडेलवाल
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22:35, 13 जनवरी 2007
यही
विश्वास
विश्वास
रख मन में कि तेरी लौ
अनश्वर
अनश्वर
है
दिखाई दे रहा जो रूप, मृण्मय आवरण भर है
भले ही देह मिटती हो, तुझे कब काल का डर है!
धरे पथ सत्य का अविकल
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Vibhajhalani