भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
1,179 bytes removed,
17:03, 21 फ़रवरी 2010
ऐ हवा कुछ तो बता<br />
जानेवालों का पता<br />
काली घटाओ तुम छू के पहाड़ों को<br />
लौट आना<br />
हाँ तुम लौट आना<br />
जंगल से जाती पगड़ण्डियों पे -२<br />
देखो तो शायद पाँव पड़े हों<br />
कोहरे की दूधिया ठडीं गुफ़ा में<br />
बादल पहन के शायद खड़े हों<br />
हौले से कानों में मेरा कहा कहना<br />
लौट आना<br />
हाँ तुम लौट आना<br />
रिसने लगा है झीलों का पानी<br />
घुलने लगा है शाम का सोना<br />
कहाँ से थामूँ रात की चादर<br />
कहाँ से पकड़ूँ धूप का कोना<br />
जाइयो पास उनके मेरा कहा कहना<br />
लौट आना<br />
हाँ तुम लौट आना<br />