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सोलह बरस की बाली उमर को सलाम / आनंद बख़्शी
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03:19, 22 फ़रवरी 2010
जिसने हमें डुबोया उस भँवर को सलाम
घूँघट को छोड़कर जो सर से सरक गयी
ऐसी निगोड़ी धानी चुनर को सलाम
..
उल्फ़त के दुश्मनों ने कोशिश हज़ार की
फिर भी नहीं झुकी जो, उस नज़र को सलाम
ऐ प्यार! तेरी पहली नज़र को सलाम...
</poem>
Sandeep Sethi
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