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ऐ मुहब्बत -२
ऐ मुहब्बत तेरी दास्तां के लिए
मैं हूँ तैयार हर इम्तेहां इम्तिहां के लिए
जान बुलबुल की है गुलिस्तां के लिए
ऐ मुहब्बत तेरी दास्तां के...
सबसे पहले तू है तेरे बाद हर एक नाम है
तू मेरा आग़ाज़ था तू ही मेरा अन्जाम है अन्जाम है
हम जियेंगे जिऐंगे और मरेंगे ऐ सनम तेरे लिए
दिल दिया है जां भी ...
तू मेरा कर्मा तू मेरा धर्मा तू मेरा अभिमान है
ऐ वतन महबूब मेरे तुझपे दिल क़ुर्बान है
हम जियेंगे जिऐंगे या मरेंगे ऐ वतन तेरे लिए
दिल दिया है जां भी देंगे ...
हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई हमवतन हमनाम हैं
जो करे इनको जुदा मज़हब नहीं इल्जाम है
हम जियेंगे जिऐंगे या मरेंगे ...
तेरी गलियों में चलाकर नफ़रतों की गोलियां
लूटते हैं सब लुटेरे दुल्हनों की डोलियां
लुट रहा है आंप वो अपने घरों को लूट कर
खेलते हैं बेखबर अपने लहू से होलियांहोलीयांहम जियेंगे जिऐंगे या मरेंगे ...
<Poem>