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|रचनाकार= जावेद अख़्तर
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[[Category:गज़ल]]हर ख़ुशी में कोई कमी सी है <br>हँसती आँखों में भी नमी सी है <br><br>{{KKCatGhazal}}
दिन भी चुप चाप सर झुकाये था <br>हर ख़ुशी में कोई कमी-सी है रात की नफ़्ज़ हँसती आँखों में भी थमी नमी-सी है <br><br>
किसको समझायेँ किसकी बात नहीं <br>दिन भी चुप चाप सर झुकाये थाज़हन और दिल में फिर ठनी रात की नब्ज़ भी थमी-सी है <br><br>
ख़्वाब था या ग़ुबार था कोई <br>किसको समझायें किसकी बात नहीं गर्द इन पलकों पे जमी ज़ेह्न और दिल में फिर ठनी-सी है <br><br>
कह गए हम किससे दिल की बात <br>ख़्वाब था या ग़ुबार था कोई शहर में एक सनसनी गर्द इन पलकों पे जमी- सी है <br><br>
कह गए हम ये किससे दिल की बातशहर में एक सनसनी-सी है  हसरतें राख हो गईं लेकिन <br>आग अब भी कहीं दबी -सी है <br><br>