भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

श्री 420 / ईचक दाना बीचक दाना

31 bytes added, 18:28, 23 फ़रवरी 2010
}}
<poem>
लता -- ईचक ईच एक दाना बीचक बीच एक दाना, दाने ऊपर दाना, ईचक ईच एक दानाछज्जे ऊपर लड़की नाचे, लड़का है दीवाना, ईचक ईच एक दाना
एक जानवर ऐसा जिसकी जिसके दुम पर पैसा
सर पे है ताज भी बादशाह के जैसा
बादल देखे छम-छम नाचे अलबेला मसताना, ईचक ईच एक दाना
बोलो क्या?
बच्चे : मोर
लता -- हरी थी मन भरी थी, लाख मोती जड़ी थी
राजा जी के बाग़ में दुशाला ओढ़े खड़ी थी
कच्चे-पक्के बाल हैं उसके मुखड़ा है सुहाना, ईचक ईच एक दाना
बोलो क्या?
मुकेश : बुड्ढी
लता -- छोटी सी छोकरी लालबाई नाम है
पहने वो घाघरा एक पैसा दाम है
मुँह में सबके आग लगाए आता है रुलाना, ईचक ईच एक दाना
बोलो क्या? बोलो न
बच्चे : मिर्ची
मुकेश : चालें वो चलकर दिल में समाया
आ ही गया वो, किया है सफ़ाया
तुम भी देखो बचकर रहना चक्कर में न आना, ईचक ईच एक दाना
लता : ग़म?
मुकेश : धत! हम!
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,693
edits