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[[चित्र:Shivling.jpg]]
<poem>चिपचिपे दूध से नहलाते हैं , आंगन में खड़ा कर के तुम्हें  
शहद भी, तेल भी, हल्दी भी, ना जाने क्या क्या
 घोल के सर पे लुढ़काते हैं गिलसियाँ गिलासियाँ भर के 
औरतें गाती हैं जब तीव्र सुरों में मिल कर
 
पाँव पर पाँव लगाए खड़े रहते हो
 
इक पथराई सी मुस्कान लिए
 बुत नहीं हो तो परेशानी तो होती होगी  
जब धुआँ देता, लगातार पुजारी
 
घी जलाता है कई तरह के छौंके देकर
 इक जरा छींक ही दो तुम, तो यकीं आए कि सब देख रहे हो </poem>
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