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Kavita Kosh से
|रचनाकार=गुलज़ार
|संग्रह =
}} <poem>कुरान हाथों में लेके नाबीना एक नमाज़ी <br>लबों पे रखता था <br>दोनों आँखों से चूमता था<br> झुकाके पेशानी यूँ अक़ीदत से छू रहा था <br>जो आयतं आयतें पढ़ नहीं सका <br>उन के लम्स महसूस कर रहा हो <br><br>
मैं हैराँ-हैराँ गुज़र गया था <br>मैं हैराँ हैराँ ठहर गया हूँ <br><br>
तुम्हारे हाथों को चूम कर <br>छू के अपनी आँखों से आज मैं ने <br>जो आयतें पड़ पढ़ नहीं सका <br>उन के लम्स महसूस कर लिये हैं <br><br/poem>