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दिन कुछ ऐसे गुज़ारता है कोई / गुलज़ार
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03:59, 24 फ़रवरी 2010
फिर नज़र में लहू के छींटे हैं <br>
तुम को शायद
मुघालता
मुग़ालता
है कोई <br><br>
देर से गूँजतें हैं सन्नाटे <br>
जैसे हम को पुकारता है कोई <br><br>
Sandeep Sethi
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