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बेचैन बहुत फिरना घबराये हुए रहना / मुनीर नियाज़ी
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21:44, 24 फ़रवरी 2010
इक बाग़ सा था अपना महकाये हुए रहना
इस हुस्न का शेवा
<ref>आदत</ref>
है, जब इश्क़ नज़र आये,
पर्दे में चले जाना, शर्माये हुए रहना|
</poem>
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Sandeep Sethi
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