भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

इक मेरी अख काशनी / पंजाबी

271 bytes removed, 23:05, 25 फ़रवरी 2010
}}
<poem>
नी इक मेरी अख काशनी,दूजा रात दे उन्नींद्रे ने मारेयामारेआ,शीशे ते तरेड़ पै गयी, वाल वौंदी ने धयान जदों मारेयामारेआ, के इक मेरी अख ....
इक मेरी सस्स चंदरी,
भैड़ी रोही दे बूटे नालों किकर तों काली, दिन रात रवे घूरदी, गल्ले-कथ्थे वीर भुन्नदी
नाले दवे मेरे माँ-पयां नू गाली,
नी क़ेहडा उस चंदरी दा, असाँ लचियाँ नी मैं लाचीयाँ दा बाग उजाड़ेयाउजाड़आ,के इक मेरी अख काशनी...
के इक दूजा मेरा दियोर निकड़ा,भैडा गौरियाँ भैड़ा गोरियाँ रन्ना दा शौकीशौंकी,
ढुक ढुक नेह्ड़े बैठदा,
रख सामणे रंगीली चौंकी,
नी इस्से गल तों डरदी ,
असाँ अजे तीक वी न घुण्ड नूँ उतारया,के इक मेरी अख काशनी...
इक तीज़ा मेरा कंत ज़िम्वे, रात चानड़ी च दुध डा दा कटोरा,रात दे फिकड़े सिन्दूरी रंग दा, ओदे नैणा च शराबी गुलाबी डोरा,
नी इको गल माड़ी उसदी,
लाईलग नु है माँ ने बिगाडिया। के इक मेरी अख काशनी, दूजा रात दे उन्नींद्रे ने मारेया,शीशे ते तरेड पै गयी,वाल वौंदी नु धयान जदों मारेया।विगाडिया।
</poem>
Delete, Mover, Uploader
894
edits