भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
}}
<poem>
नी इक मेरी अख काशनी,दूजा रात दे उन्नींद्रे ने मारेयामारेआ,शीशे ते तरेड़ पै गयी, वाल वौंदी ने धयान जदों मारेयामारेआ, के इक मेरी अख ....
इक मेरी सस्स चंदरी,
भैड़ी रोही दे बूटे नालों किकर तों काली, दिन रात रवे घूरदी, गल्ले-कथ्थे वीर भुन्नदी
नाले दवे मेरे माँ-पयां नू गाली,
नी क़ेहडा उस चंदरी दा, असाँ लचियाँ नी मैं लाचीयाँ दा बाग उजाड़ेयाउजाड़आ,के इक मेरी अख काशनी...
ढुक ढुक नेह्ड़े बैठदा,
रख सामणे रंगीली चौंकी,
नी इस्से गल तों डरदी ,
नी इको गल माड़ी उसदी,
लाईलग नु है माँ ने बिगाडिया। के इक मेरी अख काशनी, दूजा रात दे उन्नींद्रे ने मारेया,शीशे ते तरेड पै गयी,वाल वौंदी नु धयान जदों मारेया।विगाडिया।
</poem>