भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मौसम पूस माघ के / शांति सुमन

1,176 bytes added, 19:14, 26 फ़रवरी 2010
<poem>
ओ रे मौसम पूस माघ के
जब भी आना गाँव में
ढेरों बन्द लिफाफे लाना
शहरों से पंजाब के ।
 
सुजनी खाँस रही है माँ की
बहनों की अंगिया मटमैली
सूने खलिहानों का छाया
भाभी की आँखों में फैली ।
 
बाबा ने चौपहरा पूजा
रख दी मन में दाब के ।
 
खेतों के मेड़ों पर ठहका
करते थे जो आते-जाते
कितने अपने लालकका वे
आँखों से हैं बतियाते ।
 
सूखा या बाढ़ कहीं कुछ भी
गुल फूलेंगे आदाब के ।
 
गाँवों से निकली पगडंडी
मिलने आई दूर शहर से
बरफी पर बरसी महँगाई
ईद और होली के डर से
 
धूप-हवा से जीने का मन
अब तो बिना दबाव के ।
</poem>
160
edits