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Kavita Kosh से
नहीं टूटेगा यह पुल
जिस पर तुम खड़े हो
भले परानी पुरानी पड़ गईँ है इसके बाँस की बल्लियाँ
पर इरादे मजबूत हों तो
पुरानी धमनियों में भी दौड़ता है
करती है
चलो, डरो नहीं,
पुल पर चलते हुए वनस्पतियों की तरह
हरियाएगा तुम्हारा मन