तो भर जाएगी नदी
अपनी दादी की तरह
दादी बूढ़ी है, कमज़ोर है तो क्या
दादी तो है
दादी है तो हाँक लगाती है दिनभर-
दूध पी लो, नाश्ता तैयार है, खाना लग गया है
अरअरे, यह आधा खाना खारक खाकर किसने छोड़ दिया,
कौन अभी तक नहीं आया
दादी है तो डाँटती है-इतना नहीं खेलो
कभी देर तक खेलकर आने पर दरवाजा
नहीं खोलती, गुस्सा होती है
फिर वही खोल देती है दरवाजा
उसके अनुभव गढ़े शब्द हमें जगाते हैं
दादी है तो यह सब है
आँखों की नींद और खुशी के सपने हैं
हमारे लिये
नदी सूख भी जाएगी तो नदी होगी
चिड़िया जाएगी उसके पास
पेड़ बदल नहीं लेंगे जगह-खड़े रहेंगे
उसके किनारे, भाग नहीं जाएंगे उसकी
बगल के मंदिक मंदिर के देवता
कोई छीन नहीं लेगा नदी से नदीपन ।
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