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[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>दोस्त ग़मख्वारी में मेरी सअ़ई<ref>सहायता</ref> फ़रमायेंगे क्या
ज़ख़्म के भरने तलक नाख़ुन न बढ़ आयेंगे क्या
दोस्त ग़मख़्वारी में मेरी सई फ़र्मायेंगे क्याबे-नियाज़ी<brref>उपेक्षा</ref> हद से गुज़री,बन्दा परवर कब तलक ज़ख़्म के भरने तलक नाख़ून न बढ़ जायेंगे हम कहेंगे हाल-ए-दिल; और आप फ़रमायेंगे, 'क्या<br><br>?'
बेनियाज़ी हद से गुज़री बन्दा परवर कब तलक<br>हम कहेंगे हालहज़रत-ए-नासेह गर आएं, दीदा-ओ-दिल और आप फ़र्मायेंगे फ़र्श-ए-राहकोई मुझ को ये तो समझा दो कि समझायेंगे क्या<br><br>
हज़रतआज वां तेग़ो-ए-नासेह गर आयें दीदा-ओ-दिल फ़र्श-ए-राह<br>कफ़न बांधे हुए जाता हूँ मैंकोई मुझ को ये तो समझा दो कि समझायेंगे क्याउज़्र<brref>प्रशन उठाना, ना-नुकर करना<br/ref>मेरा क़त्ल करने में वो अब लायेंगे क्या
आज वां तेग़गर किया नासेह ने हम को क़ैद अच्छा! यूं सहीये जुनून--कफ़न बाँधे हुए जाता हूँ मैं<br>उज़्र मेरा क़त्ल करने में वो अब लायेंगे इश्क़ के अन्दाज़ छुट जायेंगे क्या<br><br>
गर किया नासेह ने हम को क़ैद अच्छा यों सहीख़ाना-ज़ाद-ए-ज़ुल्फ़<brref>जु्ल्फ़ों के कैदी</ref> हैं ज़ंजीर से भागेंगे क्योंये जुनूनहैं गिरफ़्तार-ए-इश्क़ के अन्दाज़ छुट जायेंगे क्यावफ़ा ज़िन्दां<brref>कैदखाना<br/ref>से घबरायेंगे क्या
ख़ाना ज़ाद-ए-ज़ुल्फ़ हैं ज़न्जीर से भागेंगे क्याहै अब इस माअ़मूरा<brref>हैं गिरफ़्तार-ए-वफ़ा ज़िन्दाँ से घबरायेंगे क्यानगर<br/ref><br> है अब इस मामूरे में क़हत-ए-ग़मक़हते-ग़मे-उल्फ़त "असद"<brref>प्रेम के दुखों का अकाल</ref> 'असद'हम ने हमने ये माना कि दिल्ली में रहे रहें, खायेंगे क्या<br><br/poem>{{KKMeaning}}
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