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09:07, 27 फ़रवरी 2010 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=घनानंद
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'''(राग केदारौ)'''
पकरि बस कीने री नँदलाल ।
काजर दियौ खिलार राधिका, मुख सों मसलि गुलाल ॥
चपल चलन कों अति ही अरबर, छूटि न सके प्रेम के जाल ।
सूधे किये बंक ब्रजमोहन, ’आनँदघन’ रस-ख्याल ॥१॥
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