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नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=घनानंद }} <poem> पिय के अनुराग सुहाग भरी, रति हेरौ न प…
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{{KKRachna
|रचनाकार=घनानंद
}}
<poem>
पिय के अनुराग सुहाग भरी, रति हेरौ न पावत रूप रफै ।
रिझवारि महा रसरासि खिलार, सुगावत गारि बजाय डफै ॥
अति ही सुकुमार उरोजन भार, भर मधुरी ड्ग, लंक लफै ।
लपटै ’घनआनँद’ घायल ह्वैं, दग पागल छवै गुजरी गुलफै ॥
</poem>
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|रचनाकार=घनानंद
}}
<poem>
पिय के अनुराग सुहाग भरी, रति हेरौ न पावत रूप रफै ।
रिझवारि महा रसरासि खिलार, सुगावत गारि बजाय डफै ॥
अति ही सुकुमार उरोजन भार, भर मधुरी ड्ग, लंक लफै ।
लपटै ’घनआनँद’ घायल ह्वैं, दग पागल छवै गुजरी गुलफै ॥
</poem>