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|रचनाकार=घनानंद
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खेलत खिलार गुन-आगर उदार राधा
नागरि छबीली फाग-राग सरसात है ।
भाग भरे भाँवते सों, औसर फव्यौ है आनि,
’आनँद के घन’ की घमंड दरसात है ॥
औचक निसंक अंक चोंप खेल धूँधरि सिहात है ।
केसू रंग ढोरि गोरे कर स्यामसुंदर कों,
गोरी स्याम रंग बीचि बूड़ि-बूड़ि जात है ॥
</poem>
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