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09:31, 27 फ़रवरी 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=घनानंद
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'''(राग कान्हरौ )'''
मोसों होरी खेलन आयौ ।
लटपटी पाग, अटपटे बैनन, नैनन बीच सुहायौ ॥
डगर-डगर में, बगर-बगर में, सबहिंन के मन भायौ ।
’आनँदघन’ प्रभु कर दृग मींड़त, हँसि-हँसि कंठ लगायौ ॥
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