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{{KKRachna
|रचनाकार = रसखान
}}
<poem>
खेलत फाग सुहाग भरी, अनुरागहिं लालन क धरि कै ।
भारत कुंकुम, केसर की पिचकारिन में रंग को भरि कै ॥
गेरत लाल गुलाल लली, मनमोहन मौज मिटा करि कै ।
जात चली रसखान अली, मदमस्त मनी मन कों हरि कै ॥
</poem>
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|रचनाकार = रसखान
}}
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खेलत फाग सुहाग भरी, अनुरागहिं लालन क धरि कै ।
भारत कुंकुम, केसर की पिचकारिन में रंग को भरि कै ॥
गेरत लाल गुलाल लली, मनमोहन मौज मिटा करि कै ।
जात चली रसखान अली, मदमस्त मनी मन कों हरि कै ॥
</poem>