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मिट्टी दा बावा (1) / पंजाबी

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सानूं गल नाल लाजा वे
मेरा सोहणा माही, आजा वे
</poem>||width="300" bgcolor="CEF0FF"|<poem>मिटटी दा से मैं बावा बनाणीआंबच्चा बनाती हूंउत्ते चा दिन्नी आं खेसीउसे कंबल उढ़ाती हूंवतनां वाले माण करनजिनके पति साथ हैं, वो खुश होंकी मैं माण करां मेरा पति तो परदेसीहैमेरा सोहणा मेरे सुँदर माही, आजा वे
बूहे अग्गे लावां बेरीआंगल्लां घर-के सामने बेरी का पेड़ लगाती हूँहर घर होंण तेरीआं ते मेरीआंमें हमारी बातें होती हैंवे तू शकल आकर अपना चेहरा दिखा जा वेजाओमेरा सोहणा मेरे सुँदर माही, आजा वे
बूहे अग्गे पाणी वगदाघर के सामने पानी बहता हैसाडा कल्लआं दा जी नईओं लगदामेरा अकेले मन नहीं लगतासानूं गल नाल लाजा वेमुझे सीने से लगा लोमेरा सोहणा मेरे सुँदर माही, आजा वे
</poem>
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