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बढ़ते चलो{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=इंदीवर}}[[Category:गीत]]<poem>जो तुमको हो पसंद, बढ़ते चलोवही बात करेंगेतुम दिन को अगर रात कहो, बढ़ते चलो जवानो।रात कगेंगेजो तुमको ...
ऎ देश के सपूतो! मज़दूर और किसानो!!चाहेंगे, निभाएंगे, सराहेंगे आप ही कोआँखों में दम है जब तक, देखेंगे आप ही कोअपनी ज़ुबान से आपके जज़्बात कहेंगेतुम दिन को अगर रात कहो, रात कहेंगेजो तुमको हो पसंद ...
देते न आप साथ तो मर जाते हम कभी केहै रास्ता भी रौशन और सामने है मंज़िल। हिम्मत पूरे हुए हैं आप से काम लो तुम आसान होगी मुश्किल।। कर , अरमान ज़िंदगी के उसे दिखा दो, जो अपने दिल में ठानो।हम ज़िंदगी को आपकी सौगात कहेंगेबढ़ते चलोतुम दिन को अगर रात कहो, बढ़ते चलो, बढ़ते चलो जवानो।।रात कहेंगेजो तुमको हो पसंद ... भूखे महाजनों ने, ले रखे हैं इजारे! जिनके सितम से लाखों फिरते हैं मारे-मारे।। हैं देश के ये दुश्मन! इनको न दोस्त जानो। बढ़ते चलो, बढ़ते चलो, बढ़ते चलो जवानो।।</poem>
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