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आगे तो हम और पीछे वह था रीछ का बच्चा ।।
 
 
था रीछ के बच्चे पे वह गहना जो सरासर।
 
हाथों में कड़े सोने के बजते थे झमक कर।
 
कानों में दुर, और घुँघरू पड़े पांव के अंदर।
 
वह डोर भी रेशम की बनाई थी जो पुर ज़र।
 
जिस डोर से यारो था बँधा रीच का बच्चा।।
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