भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
777 bytes added,
03:18, 1 मार्च 2010
'''गीतकार {{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=इंदीवर}}[[Category: गोपालदास नीरजगीत]]<poem>देख सकते नहीं तुमको जी भर के हमदिल में किसके ग़ुमां क्या गुज़र जाएगातुमको अपना कहें तो कहें किस तरह सारी महफ़िल का चेहरा उतर जाएगादेख सकते नहीं ...
तुम भी बेताब हो हम भी बेचैन हैं
दिल में मिलने की हसरत मचलने लगी
सब्र का अब तो दामन सुलगने लगा
प्यार की आग सीने में जलने लगी
तुमको मिलने न पाए अगर आज हम
लगता है दिल ही ठहर जाएगा
देख सकते नहीं ...
मेघा छाए आधी रात, हो किसी देश में या किसी भेष मेंशक्लें अपनों की पहचान लेता है दिलतुम कहो न कहो हम कहें ना कहेंबात दिल की तो खुद जान लेता है दिलसामने बस युँही मुस्कराते रहोज़िन्दगी का मुक़द्दर सँवर जाएगादेख सकते नहीं ...
बैरन बन जानकर की गई निंदिया बता दे मैं क्या करूँ मेघा छाए आधी रात, हो या अनजाने मेंदुनियावाले खता माफ करते नहींबैरन बन गई निंदियादुनियावालों का ये ज़ुलम तो देखिएदेके भी जो सज़ा माफ करते नहीं सब के आंगन दिया जले रे, मोरे आंगन जिया हवा लागे शूल जैसी, ताना मारे चुनरिया कैसे कहूँ मैं मन की बात, बैरन बन गयीं निंदिया, बता दे मैं क्या करूँ मेघा छाए आधी रात, बैरन जिँदगी बन गई निंदिया रूठ गये रे सपने सारे, टूट गयी रे आशा नैन बहे रे गंगा मोरे, फिर भी मन है प्यासा आई है आँसू कैद इंसान की बारात, बैरन बन गयी निंदिया बता दे मैं क्या करूँ कोई इलज़ाम लेकर किधर जाएगादेख सकते नहीं ...मेघा छाए आधी रात, बैरन बन गई निंदिया</poem>