''' गीतकार {{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=शैलेन्द्र}}[[Category: शमीम जयपुरीगीत]]<poem>एक दो तीन, आजा मौसम है रंगीनआजा...
रात को छुप-छुप के मिलना
दुनिया समझे पाप रे
सम्हलके खिड़की खोल बलमवा
देखे तेरा बाप रे!
आजा...
मुझ को ये मदमस्त जवानी हैतेरे लिये ये दिवानी हैडूब के इस रात की तनहाई गहराई में आवाज़ न दोदेख ले कितना पानी हैआजा...
जिसकी आवाज़ रुला दे क्यूँ तू मुझे वो साज़ न दो आवाज़ न दो...ठुकराता हैमुझसे नज़र क्यूँ चुराता हैलूट ये दुनिया तेरी हैमैंने अब तुम प्यार से न मिलने की कसम खाई क्यूँ घबराता है क्या खबर तुमको मेरी जान पे बन आई है मैं बहक जाऊँ कसम खाके तुम ऐसा न करो आवाज़ न दोआजा... दिल मेरा डूब गया आस मेरी टूट गई मेरे हाथों ही से पतवार मेरी छूट गई अब मैं तूफ़ान में हूँ साहिल से इशारा न करो आवाज़ न दो...</poem>