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सौ नेमतें खा-खा के पला रीछ का बच्चा ।
जिस वक़्त बड़ा रीछ हुआ रीछ का बच्चा ।
जब हम भी चले, साथ चला रीछ का बच्चा ।1।
जिस वक़्त बड़ा रीछ हुआ रीछ का बच्चा ।
 
 
जब हम भी चले, साथ चला रीछ का बच्चा ।1।
था हाथ में इक अपने सवा मन का जो सोटा।
एक तरफ़ को थीं सैकड़ों लड़कों की पुकारें ।
एक तरफ़ को थीं, पीरो६ जवानों की कतारें ।कतारें।
कुछ हाथियों की क़ीक़ और ऊंटों की डकारें(१)
गुल शोर, मज़े भीड़ ठठ, अम्बोह७ अम्बोह बहारें ।
जब हमने किया लाके खड़ा रीछ का बच्चा ।।5।।
कहता था कोई हमसे, मियां आओ क़लन्दर८ क़लन्दर
वह क्या हुए, अगले जो तुम्हारे थे वह बन्दर ।
हम उनसे यह कहते थे ‘‘यह पेशा है ‘क़लन्दर’।
हाँ छोड़ दिया बाबा उन्हें जंगल के अन्दर ।
जिस दिन से ख़ुदा ने यह दिया, रीछ का बच्चा’’ ।।६।।।6।
इस ढब से उसे चौक के जमघट में नचाया ।
जो सबकी निगाहों में खपा ‘‘रीछ का बच्चा’’ ।।७।।।7।
सब हँस के यह कहते थे ‘‘मियां वाह मियां’’ ।
क्या तुमने दिया ख़ूब नचा रीछ का बच्चा ।।८।।।8।
करता था कोई क़ुदरते ख़ालिक़ के तईं याद ।
हर कोई यह कहता था ख़ुदा तुमको रखे शाद१० शाद
और कोई यह कहता था ‘अरे वाह रे उस्ताद’ ।
‘‘तू भी जिये और तेरा सदा रीछ का बच्चा’’ ।।९।।बच्चा’’।9।
लिपटा(१) तो यह कुश्ती का हुनर आन दिखाया ।
वां छोटे बड़े जितने थे उन सबको रिझाया ।
इस ढब से आखाड़े में लड़ा रीछ का बच्चा ।।१०।।
 
जब कुश्ती की ठहरी तो वहीं सर को जो झाड़ा ।
ललकारते ही उसने हमें आन लताड़ा(२)
गह हमने षछाड़ा उसे, गह उसने पछाड़ा ।
एक डेढ़ पहर फिर हुआ(३) कुश्ती का अखाड़ा ।
गर हम भी न हारे, न हटा रीछ का बच्चा ।।११।।।11।
सब नक़द हुए आके सवा लाख रूपे ढेर ।
जो कहता था हर एक से इस तरह से मुँह फेर । ‘‘यारो तो लड़ा देखो ज़रा रीछ का बच्चा’’।12।
‘‘यारो तो लड़ा देखो ज़रा रीछ का बच्चा’’।।१२।।
पाठान्तर—(१) जा० लिपटा बह तो (२) आ० लथाड़ा (३) श० आ० पहर हो गया
कहता था खड़ा कोई जो कर आह अहा हा ।
इसके तुम्हीं उस्ताद हो वल्लाह११ वल्लाह ‘‘अहा हा’’ ।
यह सहर१२ किया तुमने तो नागाह१३ नागाह ‘‘अहा हा’’ ।
क्या कहिये ग़रज आख़िरश ऐ वाह ‘‘अहा हा’’ ।
जिस दिन से ‘‘नज़ीर’’ अपने तो दिलशाद यही हैं ।
जाते हैं जिधर को उधर इरशाद१४ इरशाद यही हैं ।
सब कहते हैं वह साहिबे ईजाद१५ ईजाद यही हैं ।
क्या देखते हो तुम खड़े? उस्ताद यही हैं ।
कल चौक में था जिनका लड़ा रीछ का बच्चा ।15।।14।
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