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दुनिया ने कितना समझायाकौन है अपना कौन परायाफिर भी दिल की चोट छुपा करहमने आपका दिल बहलायाखुद पे मर मिटने की ये ज़िद थी हमारीसच है दुनियावालों कि जैसे कोल्हू में सरसोंहम हैं अनाड़ी
दिल का चमन उजड़ते देखाभोर सुहानी चंचल बालक,प्यार का रंग उतरते देखाहमने हर जीने वाले कोलरकाई (लडकाई) दिखलाये,धन दौलत पे मरते देखादिल पे मरने वाले मरेंगे भिखारीहाथ से बैठा गढे खिलौने, पैर से तोडत जाये । वो तो सच है, वो तो है एक मूरख बालक, तू तो नहीं नादान, आप बनाये आप बिगाडे ये नहीं तेरी शान, ये नहीं तेरी शान ऐसा क्यों, फ़िर ऐसा क्यों...दुनियावालों कि हम हैं अनाड़ी</poem>