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[[Category:ग़ज़ल]]
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ज़ौर<ref>अत्याचार</ref> से बाज़ आये पर बाज़ आयें क्या
कहते हैं, हम तुम को मुँह दिखलायें क्या
ज़ौर से बाज़ आये पर बाज़ आयें क्या <br>रात-दिन गर्दिश में हैं सात आस्मां कहते हैं हम तुम को मुँह दिखलायें हो रहेगा कुछ-न-कुछ घबरायें क्या<br><br>
रात-दिन गर्दिश में हैं सात आस्माँ लाग<brref>शत्रुता</ref> हो तो उस को हम समझें लगाव जब न हो रहेगा कुछ न कुछ घबरायें भी, तो धोखा खायें क्या <br><br>
लाग हो तो उस को हम समझें लगाव लिये क्यों नामाबर<brref>संदेशवाहक</ref> के साथ-साथ जब न हो कुछ भी तो धोखा खायें या रब! अपने ख़त को हम पहुँचायें क्या <br><br>
हो लिये क्यों नामाबर के साथमौज-साथ ए-ख़ूँ<brref></ref> सर से गुज़र ही क्यों न जाये या रब अपने ख़त को हम पहुँचायें क्या आस्तान-ए-यार<brref><br/ref>से उठ जायें क्या
मौज-ए-ख़ूँ सर से गुज़र ही क्यों न जाये <br>उम्र भर देखा किये मरने की राह आस्तान-ए-यार से उठ जायें मर गए पर देखिये दिखलायें क्या <br><br>
उम्र भर देखा किये मरने की राह <br>मर गए पर देखिये दिखलायें क्या <br><br> पूछते हैं वो कि "ग़ालिब" कौन है <br>कोई बतलाओ कि हम बतलायें क्या <br><br/poem>{{KKMeaning}}
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