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पंच तत्त्व मैं जो सच्चिदानन्द की सत्ता सो तौ,
::हम तुम उनमैं समान ही समोई है ।
कहै रतनाकर विभूति पंच-भूत हूँ की,
::एक ही सी सकल प्रभूतनि मैं पोई है ॥
माया के प्रंपच ही सौं भासत प्रभेद सबै,
::काँच-फलकानि ज्यौं अनेक एक सोई है ।
देखौं भ्रम-पटल उघारि ज्ञान आँखिनि सौं,
::कान्ह सब ही मैं कान्हा ही में सब कोई है ॥31॥
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